कविता
मुनादी
-राजेश त्रिपाठी
राजा ने करायी मुनादी
ये जो है देश की
गरीब आबादी।
ये हो गयी है पेटू बड़ी
आ खड़ी हुई है इससे
देश में मुश्किल घड़ी।
इसके चलते बढ़ गये
जिंसों के दाम
जिससे तबाह है
देश का हर खासोआम।
बड़े हो गये हैं इसके सपने
हद से आगे बढ़ गयीं
इसकी उम्मीदें।
व्यंजन जीम रही है
वह आबादी जो थी
सूखी रोटी की आदी।
राजा साहब हैं परेशान
देश की समस्या का
भला क्या हो समाधान।
मंत्री से कहा निकालो कोई राह
यह बढ़ती महंगाई
मुल्क को कर रही तबाह।
मंत्री ने कहा हुजूर
एक रास्ता है जरूर
पर क्या वह होगा सबको मंजूर।
राजा बोले मुंह तो खोलो,
सबकी छोड़ो
तरकीब तो बोलो।
मंत्री बोला जनाब
जो देख रहे हैं बड़े ख्वाब
उनके ख्वाबों के
कतर दे पंख।
उन पर लगा दें ऐसी पाबंदी
जिसकी सोच से हो जाये
उनका जीना हराम
न रातों को नींद न दिन को आराम।
ऐसे में वे भूल जायेंगे
हर सुख-चैन
आंसुओं में डूब जायेंगे ।
उनके नैन।
खाना तो क्या वे
खुद को जायेंगे भूल
तब न उनकी आंखों में
सपने संजेंगे
न वे चैन से रहेंगे।
तब वे न गा सकेंगे
न बजा सकेंगे
चैन का बाजा।
ये सुन मुसकराये
खुश हुए राजा।
आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा. हिंदी लेखन को बढ़ावा देने के लिए आपका आभार. आपका ब्लॉग दिनोदिन आप अवश्य पधारें, यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो "फालोवर" बनकर हमारा उत्साहवर्धन अवश्य करें. साथ ही अपने अमूल्य सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ, ताकि इस मंच को हम नयी दिशा दे सकें. धन्यवाद . आपकी प्रतीक्षा में ....
ReplyDeleteभारतीय ब्लॉग लेखक मंच
danke ki chot par
ReplyDelete♥
आदरणीय राजेश त्रिपाठी जी
सस्नेहाभिवादन !
अच्छी कविता है…
जो देख रहे हैं बड़े ख्वाब
उनके ख्वाबों के
कतर दे पंख।
उन पर लगा दें ऐसी पाबंदी
जिसकी सोच से हो जाये
उनका जीना हराम
न रातों को नींद न दिन को आराम।
ऐसे में वे भूल जायेंगे
हर सुख-चैन
आंसुओं में डूब जायेंगे
उनके नैन
वर्तमान राजा-मंत्रियों ने भी यही सब चला रखा है …
ब्लॉग पर कुछ और रचनाएं भी पढ़ीं …
आपकी बौद्धिक रचनाएं प्रभावित करती हैं …
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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ReplyDeleteबहुत समय हो गया पोस्ट बदले
आपका कोई और ब्लॉग भी है क्या ?
हो तो लिंक दें