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Sunday, May 4, 2014

तभी कहेंगे देश महान!

दाने-दाने को मोहताज हैं, जहां बहुत इनसान।
पीड़ा का पर्याय जिंदगी, हर इक है हलकान।।
भेदभाव की दीवारों ने, बुना जहर का जाल।
भाईचारा नहीं रहा अब, द्वैष से सब बेहाल।।
    नेता हों या शासक जिसके बेच रहे ईमान।
    जिस देश में ऐसा हो, उसे कैसे कहें महान।।
जहां आज तलक आधी आबादी भूखी सोती है।
रावण है मदमस्त, जहां सीताएं पीड़ित रोती हैं।।
सच्चे झेलें कष्ट, जहां झूठे की इज्जत होती है।
किसी देश में क्या ऐसी भी आजादी होती है।।
    युवा हाथ बेकार जहां, मरते जहां किसान।
    जिस देश में ऐसा हो, उसे कैसे कहें महान।।
लफ्फाजी है, भाषणबाजी है, बड़े-बड़े आश्वासन।
गाली-गलौज है, मारपीट है, खो रहा अनुशासन।।
अब चुनाव ऐसे होते हैं, जैसे होता कोई समर।
जर्रे-जर्रे में जहर घुल गया, ऐसा हुआ असर।।   
    सच्चे की हो सांसत, पूजा जाता हो शैतान।
    जिस देश में ऐसा हो, उसे कैसे कहें महान।।
वादों के बियाबान में जनता खोज रही सुविधाएं।
ये वादे वे स्वप्नमहल हैं, चुनाव हुए ढह जाएं।।
आंसू हैं, आर्तनाद हैं, दिशा-दिशा में दावानल।
शांति पुनः स्थापित हो, है कोई जो करे पहल।।
    स्वार्थ-नीति में जहां हों डूबे सत्ता के 'भगवान'।
    जिस देश में ऐसा हो, उसे कैसे कहें महान।।
देश पड़ोसी आंख तरेरें, हम रह जाते हैं खामोश।
इस बुजदिली से उनका, बढ़ता और भी जोश ।।
जो पिद्दी से देश वे भी इससे, बन बैठे हैं शेर।
जाने माकूल जवाब देने में, क्यों होती है देर।।
    सीमाओं पर जहां हमेशा  हमले के इम्कान।
    जिस देश में ऐसा हो, उसे कैसे कहें महान।।
देश महान है, देश पूज्य है, देश है देव  समान।
हम चाहेंगे भला ही इसका, हो सार्विक कल्याण।।
पर हालत रुलाते हमको, जितनी बढ़ती जाती पीर।
अनाचार से त्रस्त सभी हैं, चाहे कायर या हो धीर।।
    संकट के बादल हों छाये, घिरे हुए तूफान।
    जिस देश में ऐसा हो, उसे कैसे कहें महान।।
शासन में शुचिता आए, जनमुखी हों जिसके काम।
जल,थल,नभ रहें सुरक्षित, देश बने सुख का धाम।।
भेदभाव मिट जायें जग से,फिर हो सबमें भाईचारा।
डर का विनाश हो जाये, लहरे निडर तिरंगा प्यारा।।
    देश का हर नागरिक सुखी हो, हो गरीब या धनवान।
    मुक्त हो जीवन, मुक्त हो वाणी, तभी कहेंगे देश महान।।
                                                   -राजेश त्रिपाठी