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Wednesday, February 26, 2014

एक गजल

हैवान हो गये
राजेश त्रिपाठी
इनसान थे कभी जो, हैवान हो गये।
वो तो मुश्किलों का सामान हो गये।।
      कहीं औरतों की अस्मत है लुट रही।
      कहीं मजलूमों की सांसें हैं घुट रही।।
      कहीं हर तरफ नफरत है पल रही।
      इनसानी वसूलों की बलि है चढ़ रही।।
खतरों के हर तरफ इमकान हो गये।
ये देख कर हम तो हैरान हो गये।।
      मतलबपरस्त हैं अब यार हैं कहां।
      सच पूछिए तो सच्चा प्यार है कहां।।
      इनसान से बढ़ कर पैसा हो जहां।
      कैसे कोई अजमत बचायेगा वहां।।
इनसान तो धरती के भगवान हो गये।
जो मुफलिस हैं और भी हलकान हो गये।।
      फाकाकशी कहीं है कहीं जुल्म-ओ-बरबादी।
      तकलीफजदा है मुल्क की आधी आबादी।।
      सियासत की चालों का हुआ ओ असर है।
      बेल नफरत की फैली शहर दर शहर है।।
चारों तरफ कोहराम के मंजर हैं हो गये।
अमन के फरिश्ते तो जाने कहां सो गये।।
      हद हो गयी अब तो कोई जतन कीजिए।
      मुल्क में अमन हो  इल्म ऐसा कीजिए।।
      जुल्मत से ये दुनिया है बेजार हो गयी।
      मुहब्बत की रोशनी की दरकार हो गयी।।
जो हो रहा वह देख कर हम तो पशेमान हो गये।
क्या थे, क्या था होना क्या यहां इनसान हो गये।।

Wednesday, February 12, 2014

वो तेरा मुसकराना सबेरे-सबेरे



           राजेश त्रिपाठी
वो तेरा मुसकराना सबेरे-सबेरे।
ज्यों बहारों का आना सबेरे-सबेरे।।
      पागल हुई क्यों ये चंचल हवा।
      आंचल तेरा क्यों उड़ाने लगी।।
      बागों में कोयल लगी बोलने ।
      मन मयूरी को ऐसा लुभाने लगी।।
कामनाओं ने लीं फिर से अंगडाइयां।
जो तुम याद आयीं सबेरे-सबेरे।।
      मौसम में रौनक नयी आ गयी।
      हर तरफ रुत बसंती है छा गयी।।
      मन हुआ बावरा तेरे प्यार में।
      तुम बिन भाता नहीं कुछ संसार में।।
तुम नहीं तो ऐसा मुझको लगा।
मन गया हो ठगा सबेरे-सबेरे।।
      तुम जिधर देखो जिंदगी सांस ले।
      तुमसे हर कली ऐसा एहसास ले।।
      गंध भर दे, तन-मन कर दे मगन।
      जग उठे मन में मिलन की अगन।।
बज उठी हैं हवाओं में शहनाइयां।
क्या तुमने कहा कुछ सबेरे-सबेरे।।
      तुम मेरी जिंदगी, तुम मेरा ख्वाब हो।
      हर सवालों को तुम ही तो जवाब हो।।
      तेरी आंखों में देखे हैं शम्सो-कमर।
      नूर हू नूर है जिधर है तेरी नजर।।
जिंदगी जिंदगी बन गयी।
नजर तुमसे मिली जो सबेरे-सबेरे।।
      तुम विधाता का सुंदर वरदान हो।
      तुम धड़कते दिलों का अरमान हो।।
      तुम मेरी बंदगी, जिंदगी हो मेरी।
      तुम मेरी कामना, कल्पना हो मेरी।।
यों लगा घिरी सावनी फिर घटा।
तुमने जुल्फी संवारीं सबेरे-सबेरे।


Monday, February 10, 2014

खुशियों को साथ ले के आती हैं बेटियां

   

·         राजेश त्रिपाठी
मात-पिता का गौरव बन चंदा सा चमके।
जिसके यश का सौरभ सारे जग में महके।।
घर की सुंदर अल्पना, देवों का वरदान।
बेटी तो है घर में खुशियों की पहचान।।
     घर-घर में दीप खुशी के जलाती हैं बेटियां।
     धनवान हैं वे जिनके घर आती हैं बेटियां।।
बेटी है नाम ममता का समता का नाम है।
बेटी अगर है घर में तो सुख भी ललाम है।।
लक्ष्मी का रूप है वे सरस्वती का वेष है।
जिस घर नहीं हैं बेटियां समझो क्लेश है।।
   ममता का पाठ सबको पढ़ाती हैं बेटियां।
   भगवान की कृपा से आती हैं बेटियां।।
बोझ नहीं ये तो खुदा की हैं नियामत।
जो इनको सताया तो आयेगी कयामत।।
बेटी हैं तो दुनिया बहुत खुशगवार है।
बेकार हैं वो जिन्हें न बेटी से प्यार है।।
     माता-पिता से प्यार निभाती हैं बेटियां।
     हर वक्त अपना फर्ज निभाती हैं बेटियां।।
बेटे को सिर पे बिठा बेटी को भूलते।
जो बदगुमां हो गफलत में झूमते।।
बेटे से चोट खाके होते हैं पशेमां।
रोते हैं जार-जार तब वो नादान।
    नफरत के बियाबां से बचाती हैं बेटियां।
   खुशियों की आमद हो जहां आती हैं बेटियां।।
मां,बहन और जाने कितने वेष में।
साथ निभाती हैं वे दुख-क्लेश में।।
वे हैं तो दुनिया है वरना वीरान है।
बेटी नहीं तो घर मानिंदे शमशान है।।
    हर घर को फुलवारी-सा सजाती हैं बेटियां।
    चंदन सी शीतल कितनी प्यारी हैं बेटियां।।
आओ इन्हें लगा लें गले जीवन धन्य हम करें।
हर घर में एक बेटी हो, पावन संकल्प हम करें।।
बेटी को समझे कमतर वे सचमुच बड़े लाचार हैं।
नारी है कुदरत का वरदान, सृष्टि का आधार है।।
    घर-घर को स्वर्ग-सा बनाती हैं बेटियां।
    खुशियों को साथ लेके आती हैं बेटियां।।