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Wednesday, July 14, 2010

आज का आदमी

कविता

आज का आदमी

-राजेश त्रिपाठी

आज का आदमी

लड़ रहा है,

कदम दर कदम,

एक नयी जंग।

ताकि बचा रहे उसका वजूद,

जिंदगी के खुशनुमा रंग।

जन्म से मरण तक

बाहर से अंतस तक

बस जंग और जंग।

जिंदगी के कुरुक्षेत्र में

वह बन गया है

अभिमन्यु

जाने कितने-कितने

चक्रव्यूहों में घिरा हुआ

मजबूर और बेबस है।

उसकी मां को

किसी ने नहीं सुनाया

चक्रव्यूह भेदने का मंत्र

इसलिए वह पिट रहा है

यत्र तत्र सर्वत्र।

लुट रही है उसकी अस्मिता,

उसका स्वत्व

घुट रहे हैं अरमान।

कोई नहीं जो बढ़ाये

मदद का हाथ

बहुत लाचार-बेजार है

आज का आदमी।

जीने की अभिलाषा

1 comment:

  1. आपकी कविताओं में कुछ अलग-सा स्वाद है. लेकिन एक गूँज भी है मिथकों की आदर्श मूर्तियों को धरातल पर गिराने की.
    कविताओं में आपकी दृष्टि तुलनात्मक है जो मिथकों को नये सन्दर्भों से जोड़ कर देखती है.

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